फ़िज़ूल ग़ज़ल 1

फ़िज़ूल ग़ज़ल
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बच्चे घरों के' जब बड़े जवान हो गए
तब से बुजुर्ग अपने बेजुबान हो गए

कुदरत को छेड़ कर हमें यूँ क्या मिले भला
खुद ही तबाह होने का सामान हो गए

देखो सियासतों का रंग क्या गज़ब हुआ
जितने भी' थे' शैतान, वो शुल्तान हो गए

यूँ तो किसी भी हुक़्मराँ पे है यकीं नहीं
अच्छे दिनों की बात पे क़ुर्बान हो गए

कहते थे' दिखावा जिन्हें मेरी गली के लोग
मेरे उसूल ही मेरी पहचान बन गए

कुछ भी नहीं कहा है मगर देख भर लिया
खुद ही की' नज़र में वो पशेमान हो गए

जब से तुम्हारा साथ मुझे मिल गया सनम
ज़िन्दगी के रास्ते आसान हो गए।

डॉ0 राजीव जोशी
बागेश्वर

Comments

  1. ब्लॉग जगत में स्वागत है राजीव। सुन्दर ग़जल। निरन्तरता बनाये रखना।

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    1. बहुत बहुत आभार दिशानिर्देशन करते रहिएगा

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    2. आभार सर
      मार्गनिर्देशन करते रहिएगा

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  2. सु स्वागतम
    डॉ.राजीव जी
    बेहतरीन ग़ज़ल
    सादर

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  3. पुनः..
    गूगल फॉलाव्हर का गैजेट लगाइए
    सादर

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    1. क्या करना होगा इसके लिए सर?

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    2. क्या करना होगा इसके लिए सर?

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  4. बहुत ख़ूब ! क्या बात है आदरणीय आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है। लिखते रहिए

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  5. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 06 दिसम्बर 2017 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. मुझे स्वीकारने हेतु कोटि कोटि आभार मैम
      प्रणाम

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    2. मुझे स्वीकारने हेतु कोटि कोटि आभार मैम
      प्रणाम

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  6. स्नेहिल एवं प्रेरक प्रतिक्रियाओं के लिए आभार

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  7. स्नेहिल एवं प्रेरक प्रतिक्रियाओं के लिए आभार

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  8. बहुत सुंदर ग़ज़ल...!!

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  9. बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल। वाह-वाह !

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    1. स्नेहिल एवं उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आभार

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  10. बहुत ही सुन्दर गजल.....
    वाह!!!

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  11. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद

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  12. कहते थे' दिखावा जिन्हें मेरी गली के लोग
    मेरे उसूल ही मेरी पहचान बन गए।
    सभी शेर अलग पहचान लिए हैं ! सुंदर गजल। बधाई।

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