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ग़ज़ल

 #ग़ज़ल ************* बच्चे प्यारे फूल कमल के छू लेंगे आकाश उछल के तोड़ रहे जो पत्थर पथ पर सपने उनके नहीं महल के हाथ खुरदुरे पैर दरारी पेट, पीठ पर चिपका जल के। केवल ज्वाला अग्नि नहीं है कई रूप हैं एक अनल के। उन नन्हीं/बूढ़ी आँखों में झांको ख़्वाब भरे हैं जिनमें कल के। इश्क़ की राहों में कांटे हैं चलना थोड़ा संभल संभल के। तेरी यादों का मीठापन रखता हूँ अश्क़ों में तल के। कार्य असंभव तुम्हें भूलना रोता है दिल मचल मचल के। नाम शमाँ है जिस मंज़िल का पाता है परवाना जल के। ***** डॉ. राजीव जोशी बागेश्वर।

ग़ज़ल

 *ग़ज़ल* ********************* मैं गम सजाना भी जानता हूँ तुम्हें मनाना भी जानता हूँ। छुपा के जख्मों को दिल के अपने मैं मुस्कुराना भी जानता हूँ। जो अश्क़ आँखों में आए हैं मैं उन्हें छुपाना भी जानता हूँ। संभाल कर वो पुरानी यादें गले लगाना भी जानता हूँ। गले लगा कर तुम्हारी यादें उमर बिताना भी जानता हूँ। रहोगे नाराज कब तलक तुम मैं जाँ लुटाना भी जानता हूँ। ******* डॉ. राजीव जोशी बागेश्वर।