काफ़िया-अर रदीफ़-देखे हैं बह्र- 22 22 22 22 22 22 ********* मेरी आँखों ने ऐसे मंजर देखे हैं भीख माँगते छोटे कोमल कर देखे हैं। खून पसीने से तन उनके तर देखे हैं। हवादार बिन दीवारों के घर देखे हैं तन पर उजले कपड़े ऊँची बातें दिन भर और रात में बदन नोचते नर देखे हैं। दे कर अमृत दूजों को ख़ुद गरल पिएं जो कुछ ऐसे कलयुग में भी शंकर देखे हैं। जिसने भी मेहनत से मंज़िल पाई है नहीं मील के कभी कोई पत्थर देखे हैं। ***** डॉ. राजीव जोशी बागेश्वर।
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