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ग़ज़ल

 काफ़िया-आइयों रदीफ़- क्या ख़बर बह्र-2122  2122  2122 212 ******* क्यों हवा में है नमी पुरवाईयों को क्या ख़बर दर्द कितना धुन में है शहनाइयों को क्या ख़बर। भीड़ है चारों तरफ पर हम अकेले भीड़ में  किस क़दर तन्हा हैं हम तन्हाइयों को क्या खबर। घाव कितना है ये गहरा, खून कितना लाल है अपने ही इस ज़िस्म की परछाइयों को क्या ख़बर। ज़िस्म से बहता पसीना आँख के प्याले भरे कितना प्यासा है पथिक अमराइयों को क्या ख़बर। बोझ से दुहरे हुए हैं ज़िस्म सब इस गाँव के साथ में चलती हुई परछाइयों को क्या खबर। ****** डॉ. राजीव जोशी बागेश्वर।