1222×4 वज़्न की फ़िज़ूल ग़ज़ल
*********
ख़ुदा तेरे जहाँ में हो यही बाँकी निशाँ मेरा
रहे क़दमों तले धरती वो सर पर आस्माँं मेरा।

समझ आऐंगी इक दिन तुमको ये बातें मेरी सारी
अभी कुछ तल्ख लगता है ये अंदाज़े बयाँ मेरा।

मेरा मुझमेँ नहीं कुछ भी दिया सब तेरे हाथों में
मुकद्दर फिर क्यों लेता है यहाँ अब इम्तिहाँ मेरा

नहीं ये ईंट पत्थर का है केवल ढेर समझो तुम
इमारत है ये ख्वाबों की ये ही आशियाँ मेरा।

चमन वालो जरा कह दो दिशाओं में पड़ोसी से
यहाँ महफूज है हर गुल जगा है बागबाँ मेरा।
****
डॉ.राजीव जोशी
बागेश्वर।

Comments

  1. Replies
    1. धन्यवाद सर
      प्रणाम

      Delete
    2. धन्यवाद सर
      प्रणाम

      Delete
  2. चमन वालो जरा कह दो दिशाओं में पड़ोसी से
    यहाँ महफूज है हर गुल जगा है बागबाँ मेरा।
    उम्दा श़ेर
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए दिली आभार मैम

      Delete
    2. स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए दिली आभार मैम

      Delete

Post a Comment

Popular posts from this blog

सेफ्टी वॉल्व (कहानी/संस्मरण)

जय माँ भारती