जय माँ भारती
मुहब्बत मुल्क से कितनी मैं करता हूँ बताता हूँ
लहू से रंग भरता हूँ तिरंगा जब बनाता हूँ।
तिरंगा आन है मेरी तिरंगा शान है मेरी
इसीका मैं कफ़न पहनूँ इसीको छत बनाता हूँ।
कोई जब पूछता है मुझसे घर और माँ के बारे में
मैं अपनी भारती माँ का उसे नक्शा दिखाता हूँ।
मुकुट सिर पर हिमालय का चरन रज धो रहा सागर
तिरंगे से मैं अपनी माँ के हृदय को सजाता हूँ।
तवक्को ईट गारे के मकानों की नहीं मुझको
मैं सबको साथ लेकर राष्ट्र नामक घर बनाता हूँ।
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डॉ. राजीव जोशी
बागेश्वर।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 16 अगस्त 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
उत्साहवर्द्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणिया
Deleteनमन व शुभकामनाएं । सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सर्
Deleteधन्यवाद सर् प्रणाम
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteआभार आदरणिया ज्योति जी, अपने स्नेह का कलश यूँ ही उड़ेलते रहिएगा।
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