ग़ज़ल ******* तू अगर साथ हो आसान सफर लगता है वरना' अब ख़ुद की ही परछाई से डर लगता है। जानवर भी हैं वफ़ादार अधिक इन्शाँ से आज इन्शान को इन्शान से डर लगता है। मुझको छूने भी न पाई है बलाएं कोई ये मेरी माँ की दुवाओं का असर लगता है। छू लिया चाँद मगर कुछ तो कमी है अब भी हाँसिले ज़ीस्त बिना माँ के सिफ़र लगता है। ****** काफ़िया-अर रदीफ़-लगता है बहर-2122 1122 1122 22 ****** डॉ.राजीव जोशी बागेश्वर।
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