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ग़ज़ल

 #ग़ज़ल ******************************* ये ज़िंदगी  है कर्ज़ और बही में कुछ क़रार है अदा हुई है कुछ मगर अभी भी कुछ उधार है। जहाँ भी देखता हूँ मैं दरार ही दरार है जली भुनी है दोपहर ख़फा खफ़ा बयार है। रहो भले ही ख़ुशफहम स्वयं को देख देख कर पता चलेगा अंत में कि कौन देनदार है। चले थे साथ काफ़िले जो दूर सब निकल गए हमारे साथ अब तो बस गुबार ही गुबार है। उड़ा भँवर जो एक गुल से दूसरे पे बैठता बता रहा है कौन कौन फूल दागदार है। वो शाम फिर से आएगी ढले तुम्हारे साथ जो भले तुम्हें न हो मगर हमें तो इंतज़ार है। **** काफ़िया- आर रदीफ़- है बह्र-1212   1212   1212   1212 ******************* डॉ. राजीव जोशी बागेश्वर।

ग़ज़ल

 #ग़ज़ल ************* बच्चे प्यारे फूल कमल के छू लेंगे आकाश उछल के तोड़ रहे जो पत्थर पथ पर सपने उनके नहीं महल के हाथ खुरदुरे पैर दरारी पेट, पीठ पर चिपका जल के। केवल ज्वाला अग्नि नहीं है कई रूप हैं एक अनल के। उन नन्हीं/बूढ़ी आँखों में झांको ख़्वाब भरे हैं जिनमें कल के। इश्क़ की राहों में कांटे हैं चलना थोड़ा संभल संभल के। तेरी यादों का मीठापन रखता हूँ अश्क़ों में तल के। कार्य असंभव तुम्हें भूलना रोता है दिल मचल मचल के। नाम शमाँ है जिस मंज़िल का पाता है परवाना जल के। ***** डॉ. राजीव जोशी बागेश्वर।

ग़ज़ल

 *ग़ज़ल* ********************* मैं गम सजाना भी जानता हूँ तुम्हें मनाना भी जानता हूँ। छुपा के जख्मों को दिल के अपने मैं मुस्कुराना भी जानता हूँ। जो अश्क़ आँखों में आए हैं मैं उन्हें छुपाना भी जानता हूँ। संभाल कर वो पुरानी यादें गले लगाना भी जानता हूँ। गले लगा कर तुम्हारी यादें उमर बिताना भी जानता हूँ। रहोगे नाराज कब तलक तुम मैं जाँ लुटाना भी जानता हूँ। ******* डॉ. राजीव जोशी बागेश्वर।

ग़ज़ल

 काफ़िया-आइयों रदीफ़- क्या ख़बर बह्र-2122  2122  2122 212 ******* क्यों हवा में है नमी पुरवाईयों को क्या ख़बर दर्द कितना धुन में है शहनाइयों को क्या ख़बर। भीड़ है चारों तरफ पर हम अकेले भीड़ में  किस क़दर तन्हा हैं हम तन्हाइयों को क्या खबर। घाव कितना है ये गहरा, खून कितना लाल है अपने ही इस ज़िस्म की परछाइयों को क्या ख़बर। ज़िस्म से बहता पसीना आँख के प्याले भरे कितना प्यासा है पथिक अमराइयों को क्या ख़बर। बोझ से दुहरे हुए हैं ज़िस्म सब इस गाँव के साथ में चलती हुई परछाइयों को क्या खबर। ****** डॉ. राजीव जोशी बागेश्वर।