फ़िज़ूल ग़ज़ल
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वक़्त बदले तो रिश्ते बदल जाते हैं
ख्वाहिशें बढ़ी तो अपने बदल जाते हैं

जरूरत के मुताबिक कहाँ सभी को मिलता है
ज़मीं कम पड़े तो नक्शे बदल जाते हैं

कल तक जो मन्दिर का था, आज मस्ज़िद का हो गया
सियासत है ये साहब, यहाँ मुद्दे बदल जाते हैं

दूसरों पे थी तो खूब आदर्श था जुबाँ पर
बात अपने पे आये तो चश्मे बदल जाते हैं

किरदारों को तो हमने खूब बदलते देखा है
यहाँ जरूरत के मुताबिक मगर किस्से बदल जाते हैं

ख्वाबों, खयालों  से ज़िन्दगी नहीं चलती हुज़ूर
आफ़त सर पर आए तो ज़ज़्बे बदल जाते हैं।

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डॉ.राजीव जोशी
बागेश्वर

Comments

  1. आपकी लिखी रचना  "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 27दिसंबर2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. स्थान देने के लिए कोटि कोटि आभार मैम

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  2. लाजवाब गजल ...
    वाह!!!!

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  3. वाह्ह्ह.....लाज़वाब👌

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  4. कल तक जो मन्दिर का था, आज मस्ज़िद का हो गया
    सियासत है ये साहब, यहाँ मुद्दे बदल जाते हैं----
    बहुत खूब !!!!!!!! बहुत ही सार्थक शेरों से सजी रचना बहुत अच्छी लगी --पर ये शेर खास काबिले -जिक्र है | सादर शुभकामना राजीव जी -

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए

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  5. बहुत खूब ...
    गहरा कटाक्ष है है शेर ... आज की व्यवस्था, समाज और निति को आइना दिखाता ...

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  6. बहुत खूबसूरत .

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  7. लाजवाब !! बहुत खूब आदरणीय ।

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