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Showing posts from June, 2019
                          *ग़ज़ल * क़रीब पा के तुझे फिर न दिल मचल जाए मेरे ज़िगर में कोई रोग फिर न पल जाए। नक़ाब रुख़ से जो तेरे कभी फिसल जाए मुझे तो डर है कि आशिक़ कहीं न जल जाए। यही है आरज़ू बस इक यही तमन्ना है तुम्हारी दीद के संग दम मेरा निकल जाए। मैं फूँक फूँक के रखता हूँ हर क़दम ऐसे कहीं उन्हें न मेरी बात कोई खल जाए। कि धर्म जाति सियासत ये तीन अज़गर हैं न जाने कौन कहाँ कब किसे निगल जाए। दुआ है माँ की मेरे साथ सर पे आँचल है छुवन में माँ की वो दम है क़ज़ा भी टल जाए। तू है इंसान न घबरा किसी भी मुश्किल में वही है आदमी  हर हाल में जो ढल जाए अभी समय है कि मेहनत को तू बना साधन कहीं न वक़्त यूँ ही हाथ से निकल जाए। ********* काफ़िया-अल रदीफ़- जाए बह्र- 1212   1122   1212   22 ******** डॉ. राजीव जोशी बागेश्वर।
                              ** विरह वेदना**                                 *********** दिल के तारों को झंकृत कर, मेरी चाहत को 'स्वर' दो हाथ फेर माथे पर मेरी, मेरे क्रंदन को हर लो। कुड़-कुड़ पतिया सी देह भयी, विरह ताप की ज्वाला में, आकर के मुझको प्राण-प्रिये!,शीतल बाँहो में भर लो ।।" मेरे माथे की लाली को, मिलने का ऐसा वर दो विरह व्यथा के शूल सेज पर,तुम अपना करतल धर दो। अँगार पोत सम फूल बने, पानी ज्वाला की बूंदें आकर के मेरे प्राण-प्रिये!,इनके तापस को हर लो।। बन कर मोती आशाओं के, मेरी आँखों से झर लो तुम इस 'तन' का हार बनो जी,'मन' का मुझको 'मनका' कर लो। विरह व्याल डसते हैं निस दिन, मेरी पीड़ा को समझो बना मुझे मदिरा का प्याला, अपने अधरों से धर लो।। *****                              डॉ0 राजीव जोशी                              बागेश्वर,उत्तराखंड
काफिया- अते रदीफ़-हैं। बह्र-1222  1222  1222  1222 †********** सनम को देख कर क्यों रात में जुगनू बहकते हैं निकलते हैं वो जब छत पर तो बादल भी घुमड़ते हैं। सनम जब बोलते मेरे तो मुँह से फूल झरते हैं महकती हैं फ़िज़ाएँ भी गली से जब गुजरते हैं। वो बिखरा कर के लट अपनी किसी गुलशन से जब गुजरें घटा उनको समझ कर मोर निस दिन नाँच करते हैं कभी वो जब भरी महफ़िल में सज धज कर जो आ जाएं न जाने क्यों ज़हाँ वाले मेरी किश्मत से जलते हैं। लबों को क्या कहूँ जैसे गुलाबी पंखुड़ी कोई समझ उनको ही गुल भँवरों के दिल क्यों कर मचलते हैं। हमारे मन के मंदिर में बसी मूरत तुम्हारी है तुम्हीं को याद करते हैं  तुम्हारा नाम भजते हैं। ****** डॉ. राजीव जोशी बागेश्वर।