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Showing posts from January, 2018
******फ़िज़ूल ग़ज़ल **** पास आते हो तो क्यों वक़्त सिमट जाता है क्यों अकेले में मेरा दिल ये गुनगुनाता है। है मुहब्बत का अजब ढंग निराला कैसा कोई आँखों से ही बस दिल में उतर जाता है। झूठ को भी वो बयाँ सच की तरह कर जाए सोचता हूँ उसे कैसे ये हुनर आता है। खूबियाँ कुछ तो रही होंगी मेरे भीतर भी एब मेरा ही भला सबको क्यों दिख जाता है। क़त्ल करता है हुनर से वो सितमगर साकी और इल्ज़ाम मेरे सर पे लगा जाता है। **** डॉ.राजीव जोशी बागेश्वर।
*******फ़िज़ूल बसन्त कौन है वो इस जगत में,जो समाया हर तरफ हो गयी मादक दिशाएं,रंग छाया हर तरफ यौवना नव सी धरा के मेघ दीवाने हुए फूल भँवरे और तितली कौन लाया हर तरफ। किसके आने की है आहट क्यों हवा मदमस्त है क्यों धरा ने फिर गलीचा सा बिछाया हर तरफ। फागुनी  तन हो गया और मन बसन्ती हो गया प्रेम की रसधार में हर सू नहाया हर तरफ। फूल, कलियाँ खिल उठी हैं, है धरा पीताम्बरी आगमन ऋतुराज का आनंद लाया हर तरफ। आसमाँ धरती दिशाएं बूढ़े-बच्चे और जवाँ आ गया लो आ गया  ऋतुराज आया हर तरफ। राह 'प्योंली' और 'सरसों' ने सजा दी इस कदर देख अब 'राजीव' भी वो मुस्कुराया हर तरफ। *** डॉ राजीव जोशी बागेश्वर।
***********ग़ज़ल हमसे भी कुछ बात हमारी किया करो सोच समझकर दुनियादारी किया करो। जो भी तुममें स्वाभाविक है बोलो तो बात नहीं तुम यूँ क़िरदारी किया करो। हमें लूटना है तो लूटो जाँ ले लो दिल लेकर मत पाकिटमारी किया करो। सुना सियासत सीख चुके हो दिलवर तुम वादे तुम भी अब अखबारी किया करो। जो भी दिल में है कह दो मत रोओ माँ!  यूँ रोकर मत पलकें भारी किया करो। हर इक बात पे इतना क्यों सोचा करते दिल से भी कुछ रायशुमारी किया करो। पंख लगा कर आसमान तक उड़ने दें बच्चों पर मत चार दिवारी किया करो। ******** काफ़िया-आरी रदीफ़-किया करो बहर-22  22  22  22  22  2 **** डॉ.राजीव जोशी फ़िज़ूल टाइम्स
फ़िज़ूल ग़ज़ल ****** ग़ज़ल अभी आना व जाना चल रहा है कहो कैसा फ़साना चल रहा है। जुबाँ कुछ भी वहाँ पर कह न पाए नज़र से ही बताना चल रहा है। नहीं हैं गर्म रिश्ते खून के भी यहाँ केवल निभाना चल रहा है। निशाँ कुछ तो यक़ीनन छोड़ आया मेरे पीछे जमाना चल रहा है। हवाएं हर तरफ हैं खुशनुमा सी लगे मौसम सुहाना चल रहा है। **** डॉ.राजीव जोशी बागेश्वर।
***** फ़िज़ूल पंक्तियाँ ****** अध्यापक चाहे कि श्यामपट्ट हमेशा काला रहे बच्चों के दिमाग खुले पर ज़ुबान पर ताला रहे। बेटा माँ बाप को बोझ समझ किनारा करता है चाहता है कि घर में बीबी और एक साला रहे। सियासतदां की इतनी सी जरूरत है केवल साथ में आठ-दस चमचे और गले में माला रहे। विपक्ष की भी चाहत बहुत हसीन है यहाँ चाहती है रोज समाचार में कुछ घोटाला रहे। दौलतमंद की दौलत टिक सकेगी क्या अगर? मजदूर के पैर न बिवाई न हाथों में  छाला रहे। **** डॉ.राजीव जोशी बागेश्वर।