सेफ्टी वॉल्व (कहानी/संस्मरण)

                                 *सेफ्टी वॉल्व*

     ×× बात उन दिनों की है जब मैं कक्षा 11 में पढ़ता था, सन 1992-93। घर से दूर पिताजी के साथ हम दो भाई रहते थे। पिता स्कूल में अध्यापक थे। भाई कक्षा 6 या 7 में पढ़ता था। किराए के मकान में, घर से दूर पिता का सख्त अनुशासन, यह सभी स्थितियां पिंजरे में कैद उस तोते जैसी थी जो बाहर के नजारे देख कर जोर जोर से टें-टें करता है। दो-चार कक्षा के मित्र थे जो तीन किलोमीटर की परिधि में रहते थे। उनमें एक मित्र था भुवन, जिसके पिताजी की एक छोटी सी दुकान थी, उसी के पीछे बाकी परिवार रहा करता था। उसके दुकान और घर की दूरी मेरे कमरे से लगभग दो सौ मीटर होगी। जब भी मेरे पिताजी स्टेशन से बाहर जाते या जाने की संभावना होती तो भुवन और अन्य मित्रों को संभावित 'आजादी' की तिथि पूर्व में बता दी जाती थी। संभावित तिथि को मेरे मित्र, मेरे घर के आस-पास किसी बहाने से चक्कर लगाकर कंफर्म करते कि, हम दोनों भाई अकेले हैं या नहीं? जब उन्हें लगता कि हम अकेले हैं तो बेधड़क दरवाजे पर आकर आवाज लगाते, "और राजीव! क्या कर रहा है?"  उनकी इस आवाज के लिए मेरे कान सदैव इंतज़ार करते रहते थे। उनकी मधुर आवाज मेरे कानों में मिश्री घोल देती। मेरे भाई के मन में क्या चल रहा होता, यह तो मैं नहीं जानता लेकिन, वह भी खुश होता कि, आज बाजार की चीजें खाने को मिलेंगी। रात में महाभोज भी होगा और साथ में पिताजी से यह सब छुपाने के एवज में कुछ धन-पानी भी मिलेगा।

इस दौरान कुछ खाने का आइटम मंगाना हो या किसी के चलने की आहट पर देखना हो कि, कौन आया, इन सब के लिए मेरा भाई तैयार रहता। 'सेफ्टी वॉल्व' था वह हमारा।

...... एक ऐसे ही शनिवार को पिताजी ने घर जाने का निर्णय किया था, दादी की तबियत शायद कुछ खराब थी। स्कूल में भुवन और कुंदन को संभावित 'दिवस' के बारे में बता दिया गया था। 'सेफ्टी वॉल्व' को भी समझा दिया गया था कि, पिताजी को आश्वस्त कर दें कि वह बड़े भाई के साथ आराम से रह जाएगा। आजादी के अमृत महोत्सव की शुरुआत यूं तो 2022 में हमारे प्रधानमंत्री द्वारा की गई किंतु, हम तो आजादी का अमृत महोत्सव 1991-92 में ही मना चुके थे। ...देखते-देखते शनिवार का वह दिन भी आ पहुंचा। पिताजी हम दोनों भाइयों को कुछ हिदायतें देते हुए और खाने-पीने का सामान रखकर घर को चले गए। हमारा 'सेफ्टी वॉल्व' पिताजी को गाड़ी में बिठा कर आंखों से ओझल हो जाने तक सड़क पर खड़ा रहा, और फिर आकर बोला, "दद्दा पापा चले गए हैं। अब बता मुझे क्या करना है?" मैंने कहा, "रुक जा अभी भुवन और कुंदन को आने दे।" ×××××

आगे बढ़ने से पहले यहां कुंदन का जिक्र करना भी परम आवश्यक है। सींकिया पहलवान जैसा यह हमारा मित्र बेहद 'नुकीले' दिमाग का था। इलेक्ट्रॉनिक्स उसका सबसे पसंदीदा विषय था। उसके कारण हमने भी अपना रेडियो कई बार खोलकर खराब किया था। कभी स्टेशन को ट्यून करते समय घूमने वाली सुई जो एक तार पर चलती थी निकल जाती तो कभी कुछ और बिगड़ जाता। फिर अपना मित्र कुंदन उसे ठीक करता, हमें बताता कि ये ट्रांजिस्टर है, ये देखो ये कैपेसिटर है..। हमें देख कर बड़ा गर्व होता था और हम उसके उज्जवल भविष्य पर भी खयाली महल बनाकर लिंटर भी डाल देते थे। कुंदन ने एक बार बिना किसी सहायता के एक टेलीफोन बनाया जिसमें सेल के अंदर की कार्बन रॉड और पेंसिल के अंदर का ग्रेफाइट रॉड, प्रयोग किया गया था। कुंदन जंगलात के सरकारी आवास में पिताजी के साथ रहता था उसके पिता अधिकतर बाहर ही रहते थे। वहीं जंगलात की कॉलोनी में एक घर से दूसरे घर जिसमें लगभग 50 मीटर की दूरी थी में इस फोन का परीक्षण किया गया। परीक्षण सफल रहा। अब हम इसे लंबी दूरी तक कैसे प्रयोग करें इसी पर सोच रहे थे। इसी बीच एक दिन हमारी एरिया का ट्रांसफार्मर फुँक गया। पता चला कि, महीने भर तक बिजली नहीं आएगी। एक महीने में कई प्रयोगों का अवसर हमको मिला जैसे-इसी दौरान हमने सेल खरीदकर उन्हें एक कार्डबोर्ड में लपेट कर उससे रविवार को टीवी पर 'महाभारत' सीरियल देखा। रविवार की शाम को 4:00 बजे से टी.वी. पर आने वाली फीचर फिल्म भी इन्हीं सैलों की मदद से देखी गई। हालांकि टी.वी. की पूरी स्क्रीन पर चित्र नहीं आ पा रहे थे लेकिन, हम सब छोटे से स्क्रीन पर चित्र देखकर इतने उत्साहित थे कि, जब हमने वर्ष 2005 में मोबाइल की स्क्रीन पर पहली बार चित्र देखें तो हमें कोई आश्चर्य नहीं हुआ। इतने छोटे पर्दे पर हम 'फिल्म' और 'महाभारत' कई वर्ष पहले देख चुके थे।ट्रांसफार्मर फुँकने के दौरान का जो महत्वपूर्ण प्रयोग था उसका खाका मैंने ही कुंदन और भुवन के समक्ष रखा। प्रयोग यह था कि, जो टेलीफोन कुंदन ने बनाया था उसके लंबी दूरी के परीक्षण के लिए बिजली की उस लाइन का प्रयोग किया जाए जिसमें ट्रांसफार्मर फुँकने के कारण आजकल करंट नहीं दौड़ता। कुंदन के दिमाग का बल्ब तुरंत जला, उसने तीन टेलीफोन तैयार किए। एक स्वयं कुंदन के घर पर, एक मेरे कमरे पर और एक भुवन के घर पर। फोन से निकलने वाले तारों को घर में बने 'प्लग पॉइंट' में डाला गया और हैलो! हैलो! करते ही दूसरी ओर से कुंदन और भुवन की आवाज सुनाई देने लगी। वह पल ऐसी खुशी का था मानो दुनिया का सर्वश्रेष्ठ आविष्कार हमने ही कर दिया हो। हमारे अध्यापक आर्कमिडीज का सिद्धांत पढ़ाते हुए कहते थे कि जब आर्कमिडीज ने तैरने का सिद्धांत खोजा तो वह यूरेका-यूरेका कहते हुए नंगे ही दौड़ पड़ा था। वैसी ही स्थिति हमारी भी थी किंतु हम कपड़े पहने हुए थे। लेकिन एक महीने बाद ट्रांसफार्मर  लगते ही यह सब क्रम टूट गया।

×××× अच्छा तो अब आगे चलें,  शनिवार को जब पिताजी घर से निकले, कुछ समय बाद भुवन और कुंदन कमरे में आ धमके। शाम का कार्यक्रम बनने लगा। छोटा भाई हम सब की बातें ध्यान से सुन रहा था, कुंदन ने बताया कि जंगलात में जो मंदिर है वहां शाम सात बजे से कीर्तन का कार्यक्रम भी है और कीर्तन में वो 'परियाँ' भी आने वाली हैं जिन्हें हम स्कूल में देखा करते हैं। तो रात का कार्यक्रम कुछ ऐसा बना कि आधा किलो बकरे का मीट बनाया जाएगा। मीट स्टोव में चढ़ाकर हम तीनों कीर्तन में जाएंगे।छोटे भाई को लालच देकर कमरे पर ही रोक लिया जाएगा और उससे कहा जाएगा कि कुकर में छः सीटियां आ जाएं तो स्टोव को बुझा दे और निर्णय लिया गया कि बाहर से कमरे में ताला लगा देंगे ताकि अपना 'सेफ्टी वॉल्व' भी सेफ़ रहे।

शाम को छः बजे से महाभोज बनाने की तैयारी शुरू हो गई, भाई टॉफी-बिस्किट जैसी चीजों से घिरा बैठा था और रात को मुस्तैदी से अपना फर्ज निभाने के लिए तैयार था। हम तीनों मित्र ने मिलकर प्याज आदि मसालों के साथ मीट को भूनकर प्रेशर कुकर का ढक्कन बंद कर स्टोव पर धीमी धीमी आंच में चढ़ा दिया। और भाई को बता कर कि छः सीटी आने के बाद स्टोव बुझा देना, हम दरवाजे पर बाहर से ताला लगाकर कीर्तन में चले गए। कीर्तन में लगभग नौ बजे हमने घर लौटने का निर्णय किया। भूख भी लग रही थी। रोटी बनायें या चावल? इसी पर बात करते हुए हम तीनों कमरे में पहुंचे। ताला खोलकर अंदर गए तो देखा, भाई गहरी नींद में है। हम सब ने कहा चलो पहले चावल बना लेते हैं फिर खाते समय इसे उठाएंगे। बेचारे को भूख भी लगी होगी। हम तीनों दोस्त किचन में पहुंचे वहां पहुंचकर जो दृश्य हमने  देखा उसे देखकर हमारे पैरों तले जमीन खिसक गई। कुकर का 'सेफ्टी वॉल्व' उड़ चुका था। ढक्कन हटाकर देखा तो पूरा मीट जलकर कोयला हो चुका था। कुकर भी अंदर से जलकर काला हो गया था। बाहर के कमरे में जाकर भाई को हिला कर उठाया गया, वह अधूरी आंखें खोलते हुए उठा,  हमने उससे पूछा कि तुमने स्टोव बुझाया? उसने ना में सिर हिलाया और फिर धम्म सो गया। 

     हम तीनों घबरा गए थे, भूख भी गायब हो गई थी। बिस्किट आदि खाकर भाई को नींद आ गई थी, इस कारण वह स्टोव बंद करना भूल गया था। वो तो स्टोव का तेल खत्म होने के बाद खुद ही बुझ गया था, किंतु प्रेशर कुकर में पानी सूख जाने पर उसका 'सेफ्टी वॉल्व' उड़ गया । बड़ी दुर्घटना होते-होते बच गई। अब हमारे सामने दो मुख्य समस्याएं थी एक जले हुए कुकर को धोना और प्रेशर कुकर के ढक्कन में नया 'सेफ्टी वॉल्व' लगाना मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा था डर लग रहा था कि पिताजी को पता चला तो क्या होगा भुवन बोला, 'कुकर तो मैं साफ कर दूंगा कोई चिंता नहीं, बालू से साफ हो जाएगा। 'सेफ्टी वॉल्व' का क्या होगा?' तब कुंदन ने बताया कि उसके घर में दो कुकर हैं, एक का 'सेफ्टी वॉल्व' निकालकर इसमें लगा देंगे। एक चिंता और थी कि अपना 'सेफ्टी वॉल्व' पिताजी से कुछ न कहे। दूसरे दिन सुबह रविवार था। कुकर धोने और ढक्कन में 'सेफ्टी वॉल्व'  लगाने में सुबह का समय निकल गया। भुवन ने बालू से घिस-घिस कर कुकर साफ कर दिया था और कुंदन ने 'सेफ्टी वॉल्व' भी बदल दिया था। अब हम लोगों ने दिन में दाल-चावल बनाकर खाया। भाई को भी दुःख था कि, वह कल रात उसको दी गई जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं कर सका। 'सेफ्टी वॉल्व' कुकर का उड़ा था,  हमारा 'सेफ्टी वॉल्व' हमारे साथ सुरक्षित था।  उसने यह बात कभी पिताजी को नहीं बताई।

 मेरा हमेशा से हमेशा के लिए 'सेफ्टी वॉल्व' मेरा छोटा भाई भोला! कहा भी है 'भाई का भरोसा, धन की आड़' आड़े वक़्त यही काम आते हैं।

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डॉ. राजीव जोशी

बागेश्वर।

Phon- 7579055002

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