ग़ज़ल
ग़ज़ल
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ये हालात मुश्किल बढ़ाएंगे लेकिन
वही आशियाँ फिर बसाएंगे लेकिन।
छुपा लें वो चेहरा ज़हां से भले ही
कहाँ तक वो नज़रें चुराएंगे लेकिन।
जला कर बहुत खुश हैं वो बस्तियों को
महल कैसे अपने बचाएंगे लेकिन।
भले ही उड़ी नींद अभी हालतों से
नए ख़्वाब आंखों में लाएंगे लेकिन।
दबा लें वो आवाज मेरी भले ही
हक़ीक़त कहाँ तक छुपाएंगे लेकिन।
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काफ़िया-आएंगे
रदीफ़- लेकिन
बह्र- 122 122 122 122
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डॉ. राजीव जोशी
बागेश्वर
लाजवाब
ReplyDeleteबहुत सुंदर ग़ज़ल।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteलाजवाब गजल
ReplyDeleteवाह!!!
This is nice sir🔥
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