ग़ज़ल ***** तुम चले जाओ जो महफ़िल से क़जा हो जाए कुछ न हो पास तो अम्बर ही रिदा हो जाए। ईट गारे का मकाँ हो या कोई झोपड़ हो साथ मिल जाए तुम्हारा तो कदा हो जाए। मेरे हर गीत में तुम बन के बहर बसती हो मैं अगर गाऊँ तो महफ़िल को शुब्हा हो जाए। हाथ जोड़ूँ तो मना लूँ मैं किसी ईश्वर को हाथ फैलाऊं तो फिर हक़ में दुआ हो जाए। चल पड़ा नाम बदलने का ये फैशन कैसा मैं अगर खुद का बदल लूं तो अदा हो जाए। **** डॉ. राजीव जोशी बागेश्वर। ******* काफ़िया-आ रदीफ़-हो जाए बह्र-2122 1122 1122 22
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Showing posts from October, 2018
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****ग़ज़ल ****** कभी धरती कभी अम्बर तलाश करता हूँ जहाँ में एक अदद घर तलाश करता हूँ। मैं तो दरिया हूँ समंदर तलाश करता हूँ कोई हसीन मुक़द्दर तलाश करता हूँ। बाद मरने के भी इंसान के जो साथ रहे मैं वो ही ज़र वो ही ज़ेवर तलाश करता हूँ। टिका है जिस पे इमारत का अहम ये भारी मैं वही नींव का पत्थर तलाश करता हूँ। नज़र के तीर वो ज़ुल्फ़ों के पेचो-ख़म उसके मैं वो ही आज भी तेवर तलाश करता हूँ। ****** काफ़िया-अर रदीफ़-तलाश करता हूँ बह्र-1212 1122 1212 22 ******* डॉ. राजीव जोशी बागेश्वर।
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*गीतिका* पाँव बढ़ाना सोच समझकर काँटे दर-दर बिखरे हैं। सहज नहीं है प्रेम डगर ये पग-पग खंजर बिखरे हैं। हार नहीं है भिन्न जीत से ये तो पहली सीढ़ी है लक्ष्य बना फिर चल हिम्मत से ढेरों अवसर बिखरे हैं। पेड़ कोई फलदार था कितना ये पता करना गर हो उस बगिया में जा कर देखो कितने पत्थर बिखरे हैं। छत, दरवाजे, आंगन घर का खिड़की और सब दीवारें रंग रोगन है बाहर से पर अंदर से घर बिखरे हैं। जीवन है संघर्ष ये हर पल इसका मोल तो पहचानो फूल नहीं जीवनपथ पर तो लाखों कंकर बिखरे हैं। सुर और साज सजें भी कैसे, कैसे महफ़िल में गाऊँ हमदम जब से साथ नहीं हैं गीतों के स्वर बिखरे हैं। देवभूमि उत्तरांचल है ये आके तुम भी देखो तो इस धरती के कण-कण में तो विष्णु-शंकर बिखरे हैं। ***** डॉ. राजीव जोशी बागेश्वर।