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ग़ज़ल (करके सब दरकिनार देखा है)
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ग़ज़ल *******₹ करके सब दरकिनार देखा है हमने नफरत में प्यार देखा है। नज़रें हटती नहीं नज़ारों से इसलिए बार बार देखा है। प्यार दो आखों से नहीं दिखता करके आंखों को चार देखा है। लूट कर दिल कोई तो गुजरा था हमने गर्दो-गुबार देखा है। जिसके सिर पर भी माँ का आँचल हो उसको ही मालदार देखा है। ******** राजीव जोशी बागेश्वर।
ग़ज़ल (रिश्तों में कर रहे हैं ये व्यापार सब के सब।)
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*ग़ज़ल* ********************** रिश्तों में कर रहे हैं ये व्यापार सब के सब। दौलत के दिख रहे हैं तलबगार सब के सब लथपथ पड़े हैं खून से अख़बार सब के सब बिकने लगे हैं कौड़ियों क़िरदार सब के सब। अतिचार बढ़ गया है और अधर्म भी बढ़ा जाने कहाँ चले गए अवतार सब के सब। इंसाफ की उम्मीद करें भी तो किससे हम क़ातिल बने हुए हों जो सरदार सब के सब। ये धर्म जाति और ये नफरत की राजनीति ये ही तो सियासत के हैं औज़ार सब के सब। बारिश हवा नदी व शज़र और महताब करते हैं तेरे इश्क़ का इज़हार सब के सब। ********* काफ़िया-आर रदीफ़- सब के सब बह्र- 221 2121 1221 212 *********** डॉ. राजीव जोशी बागेश्वर।