******फ़िज़ूल ग़ज़ल
****
पास आते हो तो क्यों वक़्त सिमट जाता है
क्यों अकेले में मेरा दिल ये गुनगुनाता है।

है मुहब्बत का अजब ढंग निराला कैसा
कोई आँखों से ही बस दिल में उतर जाता है।

झूठ को भी वो बयाँ सच की तरह कर जाए
सोचता हूँ उसे कैसे ये हुनर आता है।

खूबियाँ कुछ तो रही होंगी मेरे भीतर भी
एब मेरा ही भला सबको क्यों दिख जाता है।

क़त्ल करता है हुनर से वो सितमगर साकी
और इल्ज़ाम मेरे सर पे लगा जाता है।
****
डॉ.राजीव जोशी
बागेश्वर।

Comments

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०५ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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  2. अत्यन्त‎ सुन्दर‎.

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  3. राजीव जी, सुन्दर प्रस्तुति।

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  4. वाह
    बहुत खूब
    सादर

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  5. Replies
    1. धन्यवाद आपका
      7579055002

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  6. बहुत ख़ूब रचना ।

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  7. वाह!!!बहुत खूब

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  8. धन्यवाद
    उत्साहवर्धन हेतु आभार

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  9. वाह.. बहुत खूब राजीव जी

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  10. लाजवाब गजल...
    वाह!!!

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  11. वाह ! हर शेर लाजवाब !! बेहतरीन ग़ज़ल ! बहुत खूब आदरणीय ।

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