******फ़िज़ूल ग़ज़ल
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पास आते हो तो क्यों वक़्त सिमट जाता है
क्यों अकेले में मेरा दिल ये गुनगुनाता है।
है मुहब्बत का अजब ढंग निराला कैसा
कोई आँखों से ही बस दिल में उतर जाता है।
झूठ को भी वो बयाँ सच की तरह कर जाए
सोचता हूँ उसे कैसे ये हुनर आता है।
खूबियाँ कुछ तो रही होंगी मेरे भीतर भी
एब मेरा ही भला सबको क्यों दिख जाता है।
क़त्ल करता है हुनर से वो सितमगर साकी
और इल्ज़ाम मेरे सर पे लगा जाता है।
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डॉ.राजीव जोशी
बागेश्वर।
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पास आते हो तो क्यों वक़्त सिमट जाता है
क्यों अकेले में मेरा दिल ये गुनगुनाता है।
है मुहब्बत का अजब ढंग निराला कैसा
कोई आँखों से ही बस दिल में उतर जाता है।
झूठ को भी वो बयाँ सच की तरह कर जाए
सोचता हूँ उसे कैसे ये हुनर आता है।
खूबियाँ कुछ तो रही होंगी मेरे भीतर भी
एब मेरा ही भला सबको क्यों दिख जाता है।
क़त्ल करता है हुनर से वो सितमगर साकी
और इल्ज़ाम मेरे सर पे लगा जाता है।
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डॉ.राजीव जोशी
बागेश्वर।
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०५ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteआभार
Deleteअत्यन्त सुन्दर.
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
Deleteराजीव जी, सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteवाह!लाजवाब।
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत खूब
सादर
आभार सदर नमन
DeleteHave you complete script Looking publisher to publish your book
ReplyDeletePublish with us Hindi, Story, kavita,Hindi Book Publisher in India
धन्यवाद आपका
Delete7579055002
बहुत ख़ूब रचना ।
ReplyDeleteआभार Ritu जी
Deleteवाह!!!बहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDeleteउत्साहवर्धन हेतु आभार
धन्यवाद
ReplyDeleteवाह.. बहुत खूब राजीव जी
ReplyDeleteलाजवाब गजल...
ReplyDeleteवाह!!!
वाह ! हर शेर लाजवाब !! बेहतरीन ग़ज़ल ! बहुत खूब आदरणीय ।
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