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Showing posts from March, 2018
******ग़ज़ल बिन तुम्हारे हसीं मंज़र नहीं देखे जाते चाँद की चाह में दिनकर नहीं देखे जाते। चल पड़े राह तो मंज़िल पे नज़र रखना बस इस तरह मील के पत्थर नहीं देखे जाते। बात बस दीप की होती है अंधेरे घर में रोशनी के लिए पत्थर नहीं देखे जाते। स्वर्ग और नर्क सभी हैं यहीं इस धरती पर कोई भी लोक हों मरकर नहीं देखे जाते। है ये दरिया भी समन्दर से कुछ आगे बढ़ कर प्यास लगने पे समन्दर नहीं देखे जाते। ***** फ़िज़ूल टाइम्स FIJOOLTIMES.BLOGSPOT.COM ******* डॉ.राजीव जोशी बागेश्वर।
******फ़िज़ूल ग़ज़ल माँ पिता दोनों के ही भीतर मिले मुझको घर में ही मेरे ईश्वर मिले। ताप खुद सह कर मुझे रोशन किया माँ-पिता ऐसे मुझे दिनकर मिले। नाम उनका मैं भी रोशन कर सकूँ मुझको भी ऐसा कोई अवसर मिले। जब तलक माँ थी पिताजी मोम थे घर गया इस बार तो पत्थर मिले। मुस्कुराते ही दिखे हमको पिता आँख नम उनकी मगर अक्सर मिले। माँ के जाने बाद है अब ये दशा बस टपकते ज्यों पुराना घर मिले। ***** फ़िज़ूल टाइम्स FIJOOLTIMES.BLOGSPOT.COM ******* डॉ.राजीव जोशी बागेश्वर।
*******ग़ज़ल हम हैं भारत के निवासी, न दगा देते हैं अपने आचार से ही खुद का पता देते हैं। वक़्त आने पे तो हम खून बहा देते हैं सिर झुकाने से तो बेहतर है कटा देते हैं। दुश्मनी भी बड़ी सिद्दत से निभाते हैं हम हम महब्बत से महब्बत का सिला देते हैं। हम महावीर की उस पूण्य धरा के हैं सुत अपने भगवान को दिल चीर दिखा देते हैं। 'राम' का रूप दिखाते हैं हर इक बच्चे में उसकी मुस्कान से मस्ज़िद का पता देते हैं। उनकी क्या बात करें हम वफ़ा की महफ़िल में हमको जो देख के दीपक ही बुझा देते हैं। मद भरी आँख की करते हो किससे तुलना तुम कोई पूछे जो तो राजीव बता देते हैं। ******* फ़िज़ूल टाइम्स FIJOOLTIMES.BLOGSPOT.COM ******* डॉ.राजीव जोशी बागेश्वर।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एक गैर मुर्द्दफ़ ग़ज़ल के फ़िज़ूल अशआर *********** पूजा नहीं, न वंदनों का गीत गाइए नारी को साल भर यूँ ही सम्मान दीजिए।1। माँ, बहन और प्रेम की देवी के रूप में हर घर को नेमतें ये ही' बख्सी हैं ख़ुदा ने।2। लो कलम उठा ली है 'माँ' ने भी हाथ में दुर्गा को भी न अब कोई तलवार चाहिए।3। वो इक परी थी' जिसकी' वजह से ये' ख़ल्क़ है नारी को' आज फिर वो' ही' पहचान चाहिए।4। आँचल में' अब भी' दूध है, पानी भी आँख में अब मुझको मगर कोई भी अबला न जानिए।5। रानी हूँ' लक्ष्मी कभी तो' 'कल्पना' भी हूँ मर्दानगी मेरे हुनर की अब तो मानिए।6। चाहते हो अगर नेमतें परवरदिगार की नारी को सदा मान व सम्मान दीजिए।7। साया कभी भी' माँ का नहीं छूट पाएगा पर-दार को भी मातृवत समझा तो कीजिए।8। ****** फ़िज़ूल टाइम्स FIJOOLTIMES.BLOGSPOT.COM ***** डॉ.राजीव जोशी बागेश्वर।