फ़िज़ूल ग़ज़ल
******ग़ज़ल

अभी आना व जाना चल रहा है
कहो कैसा फ़साना चल रहा है।

जुबाँ कुछ भी वहाँ पर कह न पाए
नज़र से ही बताना चल रहा है।

नहीं हैं गर्म रिश्ते खून के भी
यहाँ केवल निभाना चल रहा है।

निशाँ कुछ तो यक़ीनन छोड़ आया
मेरे पीछे जमाना चल रहा है।

हवाएं हर तरफ हैं खुशनुमा सी
लगे मौसम सुहाना चल रहा है।
****
डॉ.राजीव जोशी
बागेश्वर।

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