ग़ज़ल (करके सब दरकिनार देखा है)

ग़ज़ल

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 करके सब दरकिनार देखा है

हमने नफरत में प्यार देखा है।


नज़रें हटती नहीं नज़ारों से

इसलिए बार बार देखा है।


प्यार दो आखों से नहीं दिखता

करके आंखों को चार देखा है।


लूट कर दिल कोई तो गुजरा था

हमने गर्दो-गुबार देखा है।


जिसके सिर पर भी माँ का आँचल हो

उसको ही मालदार देखा है।


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राजीव जोशी

बागेश्वर।

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