काफ़िया-अर रदीफ़-देखे हैं बह्र- 22 22 22 22 22 22 ********* मेरी आँखों ने ऐसे मंजर देखे हैं भीख माँगते छोटे कोमल कर देखे हैं। खून पसीने से तन उनके तर देखे हैं। हवादार बिन दीवारों के घर देखे हैं तन पर उजले कपड़े ऊँची बातें दिन भर और रात में बदन नोचते नर देखे हैं। दे कर अमृत दूजों को ख़ुद गरल पिएं जो कुछ ऐसे कलयुग में भी शंकर देखे हैं। जिसने भी मेहनत से मंज़िल पाई है नहीं मील के कभी कोई पत्थर देखे हैं। ***** डॉ. राजीव जोशी बागेश्वर।
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ग़ज़ल (झूठ का कितना भी ऊंचा हो महल ढह जाएगा)
*ग़ज़ल* ******* झूठ का कितना भी ऊँचा हो महल ढह जाएगा वक़्त सच का एक दिन तो आईना दिखलाएगा। क्यों न होगा आदमी गद्दार फिर तू ही बता भूखे पेटों को अगर हुब्ब-ए वतन सिखलाएगा। काट लो चाहे परों को हौंसला हो साथ तो देखना फिर से वो पंछी एक दिन उड़ जाएगा। कुछ तो कर ऐसा धरातल पर दिखाई दे जो काम झूठ से इंसाँ को कब तक बोल तू बहलाएगा। रश्क मत कर मेरी ग़ज़लों की कहन और धार पर उम्र जब ढल जाएगी ये फ़न तुझे भी आएगा। पहले छीना चैन अब तो नौकरी भी छीन ली सावधानी गर न बरती जान से भी जाएगा। माँ थी जब तक भूख क्या है कुछ पता मुझको न था धूप में सर पर मेरे अब कौन आँचल लाएगा। ******* काफिया-एगा गैर मुरद्दफ़ बहर-2122 2122 2122 212 ******* डॉ. राजीव जोशी बागेश्वर।
फ़िज़ूल ग़ज़ल ******* वक़्त बदले तो रिश्ते बदल जाते हैं ख्वाहिशें बढ़ी तो अपने बदल जाते हैं जरूरत के मुताबिक कहाँ सभी को मिलता है ज़मीं कम पड़े तो नक्शे बदल जाते हैं कल तक जो मन्दिर का था, आज मस्ज़िद का हो गया सियासत है ये साहब, यहाँ मुद्दे बदल जाते हैं दूसरों पे थी तो खूब आदर्श था जुबाँ पर बात अपने पे आये तो चश्मे बदल जाते हैं किरदारों को तो हमने खूब बदलते देखा है यहाँ जरूरत के मुताबिक मगर किस्से बदल जाते हैं ख्वाबों, खयालों से ज़िन्दगी नहीं चलती हुज़ूर आफ़त सर पर आए तो ज़ज़्बे बदल जाते हैं। ****** डॉ.राजीव जोशी बागेश्वर
वाह बधाई
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