ग़ज़ल(अब बोल दे उल्फ़त में मज़ा है कि नहीं है)
*ग़ज़ल*
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अब बोल दे उल्फ़त में मज़ा है कि नहीं है
देकर के भी दिल इसमें नफा है कि नहीं है।
दिल हार गए जिस पे वो ही जान से प्यारा
बोलो ये मोहब्बत की अदा है कि नहीं है।
खंज़र न सही हाथ में पर जान तो ले ली
मासूम की क़ातिल ये अदा है कि नहीं है।
जुगनू ये हवा फूल महक चाँद सितारे
अब तू ही बता इनमें ख़ुदा है कि नहीं है।
करना यूँ ही अब बात ख़िलाफ़त में सद्र की
इस दौर में हक़दारे सज़ा है कि नहीं है।
ए पाक नज़र है क्यों तेरी गैर मुल्क़ पर
नापाक तुझे शर्मो हया है कि नहीं है।
है मेरी मुहब्बत की गली तुझसे ही रौशन
ए जानेज़िगर तुझको पता है कि नहीं है।
'राजीव' के दिलवर हो या फिर हो कि सितमगर
जो पूछते हो ज़ख़्म हरा है कि नहीं है।
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काफ़िया-आ
रदीफ़- है कि नहीं है
बह्र-221 1221 1221 122
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डॉ. राजीव जोशी
बागेश्वर।
वाह
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