******ग़ज़ल
बिन तुम्हारे हसीं मंज़र नहीं देखे जाते
चाँद की चाह में दिनकर नहीं देखे जाते।
चल पड़े राह तो मंज़िल पे नज़र रखना बस
इस तरह मील के पत्थर नहीं देखे जाते।
बात बस दीप की होती है अंधेरे घर में
रोशनी के लिए पत्थर नहीं देखे जाते।
स्वर्ग और नर्क सभी हैं यहीं इस धरती पर
कोई भी लोक हों मरकर नहीं देखे जाते।
है ये दरिया भी समन्दर से कुछ आगे बढ़ कर
प्यास लगने पे समन्दर नहीं देखे जाते।
*****
फ़िज़ूल टाइम्स
FIJOOLTIMES.BLOGSPOT.COM
*******
डॉ.राजीव जोशी
बागेश्वर।
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १९ मार्च २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' १९ मार्च २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीया 'पुष्पा' मेहरा और आदरणीया 'विभारानी' श्रीवास्तव जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।
अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
आभार सर
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा
ReplyDeleteवाह ...
ReplyDeleteनायाब शेर ... अलग अन्दाज़ के शेर ... बहुत ख़ूब ....
वाह-वाह..शानदार
ReplyDelete