******फ़िज़ूल ग़ज़ल
माँ पिता दोनों के ही भीतर मिले
मुझको घर में ही मेरे ईश्वर मिले।

ताप खुद सह कर मुझे रोशन किया
माँ-पिता ऐसे मुझे दिनकर मिले।

नाम उनका मैं भी रोशन कर सकूँ
मुझको भी ऐसा कोई अवसर मिले।

जब तलक माँ थी पिताजी मोम थे
घर गया इस बार तो पत्थर मिले।

मुस्कुराते ही दिखे हमको पिता
आँख नम उनकी मगर अक्सर मिले।

माँ के जाने बाद है अब ये दशा
बस टपकते ज्यों पुराना घर मिले।
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फ़िज़ूल टाइम्स
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डॉ.राजीव जोशी
बागेश्वर।

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