अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एक गैर मुर्द्दफ़ ग़ज़ल के फ़िज़ूल अशआर

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पूजा नहीं, न वंदनों का गीत गाइए
नारी को साल भर यूँ ही सम्मान दीजिए।1।

माँ, बहन और प्रेम की देवी के रूप में
हर घर को नेमतें ये ही' बख्सी हैं ख़ुदा ने।2।

लो कलम उठा ली है 'माँ' ने भी हाथ में
दुर्गा को भी न अब कोई तलवार चाहिए।3।

वो इक परी थी' जिसकी' वजह से ये' ख़ल्क़ है
नारी को' आज फिर वो' ही' पहचान चाहिए।4।

आँचल में' अब भी' दूध है, पानी भी आँख में
अब मुझको मगर कोई भी अबला न जानिए।5।

रानी हूँ' लक्ष्मी कभी तो' 'कल्पना' भी हूँ
मर्दानगी मेरे हुनर की अब तो मानिए।6।

चाहते हो अगर नेमतें परवरदिगार की
नारी को सदा मान व सम्मान दीजिए।7।

साया कभी भी' माँ का नहीं छूट पाएगा
पर-दार को भी मातृवत समझा तो कीजिए।8।
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फ़िज़ूल टाइम्स
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डॉ.राजीव जोशी
बागेश्वर।

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