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"गंदी बातें" (कहानी)

                        *गंदी बातें*                    ************ गंदी बात का आकर्षण भी कुछ कम नहीं है। कहानी का शीर्षक यदि 'गंदी बातें' हो तो पाठक, कुछ कहानी अपने मन में भी गढ़ने लगता है जो कि स्वाभाविक प्रक्रिया है। इस कहानी का नायक एक परिपक्व व्यक्ति है जो, शिक्षा विभाग में राज्य लोक सेवा आयोग से चयनित अधिकारी पद पर कार्यरत है। तेज दिमाग, चुस्त एवं फुर्तीले शरीर का यह नायक कब- कैसे मेरी कहानी का नायक बन बैठा यह भी अपने आप में एक कहानी है।  ......खैर अरविंद दुबले पतले शरीर पर एक पेंट तथा ऊपर से पेंट के बाहर निकली लगभग बत्तीस इंच साइज की कमीज धारण कर दो-तीन दिन की बासी दाढ़ी को खुजलाते हुए जैसे ही मेरी केबिन में पहुंचा तो, कुछ देर दरवाजे पर खड़े होकर इधर-उधर देखते हुए बोला, 'अरे क्या कर रहे हो?'  'कुछ नहीं बस कुछ फाइल निपटा रहा था' । आप बताओ, मैंने कहा। 'अरे कुछ नहीं एक-दो कव्वों को टाँगकर आ रहा हूं।' अरविंद ने मुंह को पूरा गोल खोलते हुए कहा। 'चलो यार चाय पीते हैं ब...

Books Rajeev Joshi राजीव जोशी

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ग़ज़ल (करके सब दरकिनार देखा है)

ग़ज़ल *******₹  करके सब दरकिनार देखा है हमने नफरत में प्यार देखा है। नज़रें हटती नहीं नज़ारों से इसलिए बार बार देखा है। प्यार दो आखों से नहीं दिखता करके आंखों को चार देखा है। लूट कर दिल कोई तो गुजरा था हमने गर्दो-गुबार देखा है। जिसके सिर पर भी माँ का आँचल हो उसको ही मालदार देखा है। ******** राजीव जोशी बागेश्वर।

ग़ज़ल (रिश्तों में कर रहे हैं ये व्यापार सब के सब।)

                    *ग़ज़ल* ********************** रिश्तों में कर रहे  हैं ये व्यापार सब के सब। दौलत के  दिख रहे हैं तलबगार सब के सब लथपथ पड़े हैं खून से अख़बार सब के सब बिकने लगे हैं कौड़ियों क़िरदार सब के सब। अतिचार  बढ़  गया  है  और अधर्म  भी बढ़ा जाने  कहाँ चले  गए  अवतार  सब के  सब। इंसाफ  की  उम्मीद  करें  भी तो किससे हम क़ातिल  बने  हुए  हों जो सरदार सब के सब। ये  धर्म  जाति  और  ये नफरत की राजनीति ये ही तो सियासत के  हैं औज़ार सब के सब। बारिश  हवा  नदी  व  शज़र   और   महताब करते  हैं  तेरे  इश्क़  का  इज़हार सब के सब। ********* काफ़िया-आर रदीफ़- सब के सब बह्र- 221   2121   1221  212 *********** डॉ. राजीव जोशी बागेश्वर।

Dr Rajeev Joshi राजीव जोशी

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ग़ज़ल

                  ग़ज़ल ************************* ये हालात मुश्किल बढ़ाएंगे लेकिन वही आशियाँ फिर बसाएंगे लेकिन। छुपा लें वो चेहरा ज़हां से भले ही कहाँ तक वो नज़रें चुराएंगे लेकिन। जला कर बहुत खुश हैं वो बस्तियों को महल कैसे अपने बचाएंगे लेकिन। भले ही उड़ी नींद अभी हालतों से नए ख़्वाब आंखों में लाएंगे लेकिन। दबा लें वो आवाज मेरी भले ही हक़ीक़त कहाँ तक छुपाएंगे लेकिन। ***** काफ़िया-आएंगे रदीफ़- लेकिन बह्र- 122  122  122  122 *********** डॉ. राजीव जोशी बागेश्वर