ग़ज़ल

 *ग़ज़ल*

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मैं गम सजाना भी जानता हूँ

तुम्हें मनाना भी जानता हूँ।


छुपा के जख्मों को दिल के अपने

मैं मुस्कुराना भी जानता हूँ।


जो अश्क़ आँखों में आए हैं मैं

उन्हें छुपाना भी जानता हूँ।


संभाल कर वो पुरानी यादें

गले लगाना भी जानता हूँ।


गले लगा कर तुम्हारी यादें

उमर बिताना भी जानता हूँ।


रहोगे नाराज कब तलक तुम

मैं जाँ लुटाना भी जानता हूँ।

*******

डॉ. राजीव जोशी

बागेश्वर।

Comments

  1. वाह बहुत सुन्दर। लिखते रहा करो।

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    1. प्रणाम सर् आभार

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 03 जून 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  3. गले लगा कर तुम्हारी यादें

    उमर बिताना भी जानता हूँ।



    रहोगे नाराज कब तलक तुम

    मैं जाँ लुटाना भी जानता हूँ।---खूब बधाई

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  4. रहोगे नाराज कब तलक तुम
    मैं जाँ लुटाना भी जानता हूँ।
    ......
    ..............बहुत बढ़िया।

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    1. धन्यवाद आपका सर्

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  5. जो अश्क़ आँखों में आए हैं मैं
    उन्हें छुपाना भी जानता हूँ।

    सुंदर ग़ज़ल..🙏

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  6. बहुत खूब राजीव जी!!!👌👌👌🙏🙏

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    1. धन्यवाद रेणु जी

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  7. बहुत बहुत आभार सर्

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