**विरह वेदना**
                                ***********
दिल के तारों को झंकृत कर, मेरी चाहत को 'स्वर' दो
हाथ फेर माथे पर मेरी, मेरे क्रंदन को हर लो।
कुड़-कुड़ पतिया सी देह भयी, विरह ताप की ज्वाला में,
आकर के मुझको प्राण-प्रिये!,शीतल बाँहो में भर लो ।।"

मेरे माथे की लाली को, मिलने का ऐसा वर दो
विरह व्यथा के शूल सेज पर,तुम अपना करतल धर दो।
अँगार पोत सम फूल बने, पानी ज्वाला की बूंदें
आकर के मेरे प्राण-प्रिये!,इनके तापस को हर लो।।

बन कर मोती आशाओं के, मेरी आँखों से झर लो
तुम इस 'तन' का हार बनो जी,'मन' का मुझको 'मनका' कर लो।
विरह व्याल डसते हैं निस दिन, मेरी पीड़ा को समझो
बना मुझे मदिरा का प्याला, अपने अधरों से धर लो।।
*****

                             डॉ0 राजीव जोशी
                             बागेश्वर,उत्तराखंड

Comments

  1. दिल के तारों को झंकृत कर, मेरी चाहत को 'स्वर' दो
    हाथ फेर माथे पर मेरी, मेरे क्रंदन को हर लो।
    बेमिसाल रचना
    सादर

    ReplyDelete
  2. प्रणाम सर् धन्यवाद

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

सेफ्टी वॉल्व (कहानी/संस्मरण)

जय माँ भारती