****ग़ज़ल
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कभी धरती कभी अम्बर तलाश करता हूँ
जहाँ में एक अदद घर तलाश करता हूँ।

मैं तो दरिया हूँ समंदर तलाश करता हूँ
कोई हसीन मुक़द्दर तलाश करता हूँ।

बाद मरने के भी इंसान के जो  साथ रहे
मैं वो ही ज़र वो ही ज़ेवर तलाश करता हूँ।

टिका है जिस पे इमारत का अहम ये भारी
मैं वही नींव का पत्थर तलाश करता हूँ।

नज़र के तीर वो ज़ुल्फ़ों के पेचो-ख़म उसके
मैं वो ही आज भी तेवर तलाश करता हूँ।
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काफ़िया-अर
रदीफ़-तलाश करता हूँ
बह्र-1212  1122  1212  22
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डॉ. राजीव जोशी
बागेश्वर।

Comments

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १५ अक्टूबर २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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    1. बहुत बहुत आभार सर्

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  2. बहुत ख़ूब राजीव ! अपनी तलाश जारी रक्खो, तुमको बहुत कुछ मिल जाएगा.

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    1. धन्यवाद सर्
      प्रणाम आपके पावन चरणों में।

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  3. शानदार प्रस्तुति

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  4. टिका है जिस पे इमारत का अहम ये भारी
    मैं वही नींव का पत्थर तलाश करता हूँ।
    बहुत खूब ......।

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