*******फ़िज़ूल ग़ज़ल

बस यही इक सवाल है साहिब
क्यों ये शरहद यूँ लाल है साहिब।

कब तलक दिन गुजारें निन्दा में
खून में अब उबाल है साहिब।

फिर गए हो जुबाँ से तुम शायद
बदली बदली सी चाल है साहिब।

बात करते हो तुम पकौड़ों की
दाल रोटी मुहाल है साहिब।

रहनुमा गोस्त खा गये सारा
शेष हड्डी पे खाल है साहिब।
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**फ़िज़ूल टाइम्स
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राजीव जोशी
बागेश्वर।

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