लघु कथा
*लघु कथा-*
*गंध*
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किचन में प्याज काटते हुए माँ को बेटे और बहू की आवाज साफ साफ सुनाई दे रही थी, "सुनो जी इस बार लॉकडाउन क्या हुआ घर का तो बज़ट ही गड़बड़ा गया। मां जी दिन भर किचन में कुछ न कुछ पकाती ही रहती हैं प्याज टमाटर रोज लाने पड़ रहे हैं उनसे कह दो ऐसे नहीं चलेगा, मैं कहूंगी तो कहेंगी बहू लड़ रही है तुम्हीं कह दो।"
"सरिता! रहने दो क्या कहना है वैसे भी इस बार लॉक डाउन की वजह से काम वाली की छुट्टी रही तो उसका पेमेंट तो बच ही गया और सारा काम माँ ने ही तो संभाला!"।
"हाँ ये तो है, सुनो! मैं क्या कहती हूँ, माँ जी सब करती तो हैं बर्तन भी कितनी सफाई से धोती हैं और कपड़े भी, क्यों न आगे से काम वाली की हमेशा के लिए छुट्टी कर दें?"
"ठीक कह रही हो सरिता तुम! मैं भी यही सोच रहा था, कितने विचार मिलते हैं हमारे एक दूसरे से । मां जी से कह देंगे कि कोई कामवाली नहीं मिल रही है!! दोनों खिलखिला कर हँस पड़े। मां ने बर्तन धोने के लिए नल खोल दिया पानी की तेज आवाज में भी दोनों की हँसी सुनाई दे रही थी। माँ के हाथ से प्याज की गंध तो दूर हो गयी लेकिन जो गंध बैडरूम से आ रही थी वो कैसे दूर होगी। मां ने धोती से हाथ पोछ कर सभी के लिए पतीले में चाय का पानी चढ़ा दिया।
*****
डॉ. राजीव जोशी
बागेश्वर, उत्तराखंड।
*गंध*
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किचन में प्याज काटते हुए माँ को बेटे और बहू की आवाज साफ साफ सुनाई दे रही थी, "सुनो जी इस बार लॉकडाउन क्या हुआ घर का तो बज़ट ही गड़बड़ा गया। मां जी दिन भर किचन में कुछ न कुछ पकाती ही रहती हैं प्याज टमाटर रोज लाने पड़ रहे हैं उनसे कह दो ऐसे नहीं चलेगा, मैं कहूंगी तो कहेंगी बहू लड़ रही है तुम्हीं कह दो।"
"सरिता! रहने दो क्या कहना है वैसे भी इस बार लॉक डाउन की वजह से काम वाली की छुट्टी रही तो उसका पेमेंट तो बच ही गया और सारा काम माँ ने ही तो संभाला!"।
"हाँ ये तो है, सुनो! मैं क्या कहती हूँ, माँ जी सब करती तो हैं बर्तन भी कितनी सफाई से धोती हैं और कपड़े भी, क्यों न आगे से काम वाली की हमेशा के लिए छुट्टी कर दें?"
"ठीक कह रही हो सरिता तुम! मैं भी यही सोच रहा था, कितने विचार मिलते हैं हमारे एक दूसरे से । मां जी से कह देंगे कि कोई कामवाली नहीं मिल रही है!! दोनों खिलखिला कर हँस पड़े। मां ने बर्तन धोने के लिए नल खोल दिया पानी की तेज आवाज में भी दोनों की हँसी सुनाई दे रही थी। माँ के हाथ से प्याज की गंध तो दूर हो गयी लेकिन जो गंध बैडरूम से आ रही थी वो कैसे दूर होगी। मां ने धोती से हाथ पोछ कर सभी के लिए पतीले में चाय का पानी चढ़ा दिया।
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डॉ. राजीव जोशी
बागेश्वर, उत्तराखंड।
अच्छी लघु कथा।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद सर् प्रणाम
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 31 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteस्थान देने के लिए आभार
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
वाह!सुंदर ओर सटीक ।
ReplyDeleteआभार शुभा जी
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 12 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबढ़िया कहानी
ReplyDeleteमाँ को कामवाली बना दिया ..
ReplyDeleteओह!एक कटु सत्य...
बहुत सुन्दर लघुकथा
लघु कथा और लघुकथा में थोड़ा फर्क है..
ReplyDeleteयह मार्मिक लघुकथा है...
प्रणाम मैम
ReplyDeleteदोनों का अंतर बताइएगा plz बार बार सुना मैंने भी है कि दोनों में अंतर है लेकिन, अंतर क्या है ये पता नहीं।
मुझे भी नहीं पता पर विभा दीदी कई बार लिखती रहती हैं अपने ब्लॉग पर
Delete🙏🙏
आज के स्वार्थी लोगों की आँखें नम करने वाली मर्मकथा! सम्भवतः हमारे आज के कर्म में ही हमारे भविष्य की तस्वीर छुपी होती हैं, ये भूल जाती हैं कुटिल संताने।
ReplyDeleteबढ़िया लिखा।
ReplyDeleteआभार अनीता सैनी जी
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