काफ़िया-आने
रदीफ़- हो गए
बह्र-2122 2122 2122 212
**********
वक़्त की रफ्तार में ये क्या फसाने हो गए
खो गया बच्चों का बचपन वो सयाने हो गए।
बस किताबी ज्ञान में उलझा हुआ है बचपना
खेलना मिट्टी में कंचों से जमाने हो गए।
वो किताबों से न जिनका था कोई रिश्ता उन्हें
ज्यों संभाला होश तो पैसे कमाने हो गए।
डर नहीं है आदमी को डोलती इंसानियत
फर्ज़ से बचने के भी सौ सौ बहाने हो गए।
कल सियासत के भी कुछ आदाब थे आदर्श थे
आज ये बस ज़ुर्म ढकने के ठिकाने हो गए।
शब्द जो भी थे ज़ुबाँ पर लेखनी में आ गए
हर्फ़ कागज़ पर जो उतरे तो तराने हो गए।
******
डॉ. राजीव जोशी
बागेश्वर।
रदीफ़- हो गए
बह्र-2122 2122 2122 212
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वक़्त की रफ्तार में ये क्या फसाने हो गए
खो गया बच्चों का बचपन वो सयाने हो गए।
बस किताबी ज्ञान में उलझा हुआ है बचपना
खेलना मिट्टी में कंचों से जमाने हो गए।
वो किताबों से न जिनका था कोई रिश्ता उन्हें
ज्यों संभाला होश तो पैसे कमाने हो गए।
डर नहीं है आदमी को डोलती इंसानियत
फर्ज़ से बचने के भी सौ सौ बहाने हो गए।
कल सियासत के भी कुछ आदाब थे आदर्श थे
आज ये बस ज़ुर्म ढकने के ठिकाने हो गए।
शब्द जो भी थे ज़ुबाँ पर लेखनी में आ गए
हर्फ़ कागज़ पर जो उतरे तो तराने हो गए।
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डॉ. राजीव जोशी
बागेश्वर।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 29 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
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ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 30 अक्टूबर 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका
Deleteलाजवाब
ReplyDeleteप्रणाम सर् आभार आपका
Deleteगज़ब की ग़ज़ल
ReplyDeleteवाह
धन्यवाद सर्
Deleteवाह ...
ReplyDeleteलाजवाब शेरो का गुलदस्ता... कुछ यादों को छूता हुआ ...
उत्साहवर्धन हेतु हृदयतल से आभार
Deleteउत्साहवर्धन के लिए आभार सर्
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