फ़िज़ूल ग़ज़ल
*******
वक़्त बदले तो रिश्ते बदल जाते हैं
ख्वाहिशें बढ़ी तो अपने बदल जाते हैं
जरूरत के मुताबिक कहाँ सभी को मिलता है
ज़मीं कम पड़े तो नक्शे बदल जाते हैं
कल तक जो मन्दिर का था, आज मस्ज़िद का हो गया
सियासत है ये साहब, यहाँ मुद्दे बदल जाते हैं
दूसरों पे थी तो खूब आदर्श था जुबाँ पर
बात अपने पे आये तो चश्मे बदल जाते हैं
किरदारों को तो हमने खूब बदलते देखा है
यहाँ जरूरत के मुताबिक मगर किस्से बदल जाते हैं
ख्वाबों, खयालों से ज़िन्दगी नहीं चलती हुज़ूर
आफ़त सर पर आए तो ज़ज़्बे बदल जाते हैं।
******
डॉ.राजीव जोशी
बागेश्वर
*******
वक़्त बदले तो रिश्ते बदल जाते हैं
ख्वाहिशें बढ़ी तो अपने बदल जाते हैं
जरूरत के मुताबिक कहाँ सभी को मिलता है
ज़मीं कम पड़े तो नक्शे बदल जाते हैं
कल तक जो मन्दिर का था, आज मस्ज़िद का हो गया
सियासत है ये साहब, यहाँ मुद्दे बदल जाते हैं
दूसरों पे थी तो खूब आदर्श था जुबाँ पर
बात अपने पे आये तो चश्मे बदल जाते हैं
किरदारों को तो हमने खूब बदलते देखा है
यहाँ जरूरत के मुताबिक मगर किस्से बदल जाते हैं
ख्वाबों, खयालों से ज़िन्दगी नहीं चलती हुज़ूर
आफ़त सर पर आए तो ज़ज़्बे बदल जाते हैं।
******
डॉ.राजीव जोशी
बागेश्वर
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 27दिसंबर2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteस्थान देने के लिए कोटि कोटि आभार मैम
Deleteलाजवाब गजल ...
ReplyDeleteवाह!!!!
आभार सर
Deleteवाह्ह्ह.....लाज़वाब👌
ReplyDeleteधन्यवाद आपज
Deleteवाह
ReplyDeleteआभार सर
Deleteकल तक जो मन्दिर का था, आज मस्ज़िद का हो गया
ReplyDeleteसियासत है ये साहब, यहाँ मुद्दे बदल जाते हैं----
बहुत खूब !!!!!!!! बहुत ही सार्थक शेरों से सजी रचना बहुत अच्छी लगी --पर ये शेर खास काबिले -जिक्र है | सादर शुभकामना राजीव जी -
बहुत बहुत धन्यवाद स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteगहरा कटाक्ष है है शेर ... आज की व्यवस्था, समाज और निति को आइना दिखाता ...
धन्यवाद
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteबहुत खूबसूरत .
ReplyDeleteआभार
Deleteलाजवाब !! बहुत खूब आदरणीय ।
ReplyDeleteआभार
Deleteआभार
Delete